उर्वशी
उर्वशी एक शोध पत्रिका संपादक डाँ0 राजेश श्रीवास्तव शम्बर
गुरुवार, 27 अगस्त 2009
हंसी पर एक कविता
यह कविता बहुत दिनों पहले लिखी थी सुनो
टी वी खोलो कि अब हंसने का वक्त हो गया है
पर हंसी आती है उन्हें हंसता देखकर
वे सब रोते -से और बडे निरीह नज़र आते हैं
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