मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

इसे नया नहीं कहते

यार । जो भी सोचो कुछ उल्टा ही हो रहा है । इसे नया तो नहीं कहते । हालाँकि बुजुर्गों ने ऐसें ही अब्सरों के बारे मे कहा है की जो बेहतर है वाही होगा । शायर कहता है की -
सोचिये कुछ हो जाता है कुछ
सोच का सच से यही नाता है कुछ
या फ़िर
तकदीर बनने वाले तुने कमी न की
अब किसको क्या मिला ये मुक्क़द्दर की बात है ।