गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

अहम् ब्रहास्मी कहानी संग्रह डॉ राजेश श्रीवास्तव शम्बर

हिन्दी के चर्चित कहानीकार डॉ राजेश श्रीवास्तव शम्बर का एक मात्र कथासंग्रह अहम ब्रह्मास्मि १९९९ मे पड़ाव प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था । इसके बाद उनकी कई कहानिया पत्र पत्रिकाओं मे आईं । कुछ खास कहानियाँ ये हैं -
१- लहरों का द्वंद्व - सारिका १९८४
२-काला आदमी - वागर्थ २००६
३ - सलोनी -साक्षात्कार २००६
४- भादों की दोपहर - समरलोक २००८
५ - इहम्राग - जज्बात २००७
६- पलाश के फूल -
कुछ नाम भूल भी रहा हूँ जो मेने पडी हैं ।
लगभग दो दर्ज़न कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं और दो नाटक (तीन के चौवन , जय यात्रा )तैयार है । देरों लेख ३०-४०- शोधपत्र , व्यंग लेख ,लघुकथाएं और कवितायें हमारे सामने हैं । कविता के लिए उन्हें जनार्दन सम्मान २००५ मिला है । वे एन सी सी के कैप्टेन भी हैं और गवर्मेंट कोलेज मे प्रोफेसर हैं । अच्छे पत्रकार भी रह चुके है और बासुरी गजब की बजाते हैं ।
( उनके ही ब्लॉग पर चोरी से यह सब लिख दिया । किसी को अपने ब्लॉग का पासवर्ड नहीं बताना चाहिए । )_
अनिमेष केतन , पारा-डी किस्च्ले , लन्दन यु के १३३७-२३४५ ऍफ़

मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

इसे नया नहीं कहते

यार । जो भी सोचो कुछ उल्टा ही हो रहा है । इसे नया तो नहीं कहते । हालाँकि बुजुर्गों ने ऐसें ही अब्सरों के बारे मे कहा है की जो बेहतर है वाही होगा । शायर कहता है की -
सोचिये कुछ हो जाता है कुछ
सोच का सच से यही नाता है कुछ
या फ़िर
तकदीर बनने वाले तुने कमी न की
अब किसको क्या मिला ये मुक्क़द्दर की बात है ।

रविवार, 14 दिसंबर 2008

शम्बर की दुनिया मे भी आज कुछ नया होगा ,ऐसा लगता है .

न जाने क्यों ऐसा लगता है की कुछ अच्छा और नया होने वाला है।
वसीर बद्र का ये शेर तो आपने भी सुना होगा
अपने रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकी हुई दुनिया को सम्हालो यारों
कैसे आकाश मे सुराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों

आज कुछ नया होगा ,ऐसा लगता है .

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

जन्मदिन की शुभकामनाएं निशु

प्यारे निशु ,
आज तुम १६ साल के हो रहे हो । जन्मदिन पर बहुत बहुत शुभकामनाएं, मेरी और मम्मी की तरफ़ से । खूब मन लगाकर पढो और प्रगति करो । खुश रहो ।
----पापा

शनिवार, 6 दिसंबर 2008

कुछ शेर बनाए

बहुत दिनों के बाद कुछ खाली समय मिला । इधर चुनाव थे ,तो उधर कालेज मे परीक्षा की तयारी चल रही है । कुछ भाग दौड़ , सबकुछ यूँ ही --- कुछ शेर बनाई हैं -गौर फरमाए
गफलत मे हमने चार दिन की जिंदगानी की
अपने ही आपसे ये कैसी बेईमानी की
बचपन से जिस समय का हमें इंतजार था
बे फिजूल हमने अपनी ये जवानी की

गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

naresh mehta par sakshatkar mila

हिन्दी साहित्य अकादमी भोपाल से प्रकाशित होने वाली पत्रिका साक्षात्कार का नरेश मेहता विशेषांक मिला । इसमें भुत साडी सामग्री है और बहुत काम की भी है । मेरा एक लेख शबरी पर इसमें छपने वाला था , सम्पादकजी ने क्यों नहीं छापा पता नहीं । खैर ; यह उनका सोच है । मैं उसका कई महीनों से इंतजार कर रहा था । गोयनका जी तो ग्रेट हैं । उनकी बातचीत काम आएगी ।

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

समरलोक मे कहानी भादों की दोपहर

भोपाल से प्रकाशित होने वाली हिन्दी की बहुचर्चित पत्रिका समरलोक के ताजे अंक मे मेरी कहानी भादों की दोपहर छपी है । संपादक पदमश्री मेहरुन्निशा परवेज़ ने इसे रेखाचित्र विशेषांक मे स्थान दिया है । बहुत से दोस्तों और पाठकों की बधाइयां मिलीं , बहुत अच्छा लगा ।
दोस्तों , यह कहानी मेरे मन की कहानी है । कितने सालों से यह कहानी मेरे मन में चल रही थी । यह मेरे बचपन के अनुभव के आधार पर लिखी गई है । बस कहानी बनाने के लिए अंत को थोड़ा बदलना पड़ा है । एक मुस्लिम परिवार हमारे पड़ोस मे रहता था । उसमे दो लड़कियां थीं । बड़ी आपा की शादी हुई तब में कक्षा ६ मे पढता था । डिलिवरी के समय उनकी मौत हो गई । उस परिवार के उस समय के दुःख को मेने बहुत पास से देखा है । दो महीने बाद ही उनके दामाद हमारे घर आए और मेरी माँ से बोले की आप उनके घर हमारा संदेश पहुँचा दो की अगर बो लोग तैयार हैं तो हम छोटी लड़की से शादी करना चाहते हैं ।
यह सुनकर ही मेरी माँ उन पर गुस्सा हो गई और बोली - यह बात आप ख़ुद क्यों नहीं कहते । वेसे भी यह ग़लत है । वे बोले - नहीं आंटी जी , हम लोगों मे एसा चलता है ।
मेरी माँ ने संकोच करते हुए छोटी आपा के लिए उनकी अम्मी से बात कही और कहा की आप ऐसा बिल्कुल ना करना । उस पर बहुत हंगामा भी हुआ । बस उसी घटना की जो स्मर्तियाँ मेरे पास थीं उसी के उधेड़ बुन से यह कहानी बनी है । मुस्लिम घर के माहोल और उनकी उर्दू शब्दाबली तक पहुचने मे थोडा श्रम करना पड़ा , हलाकि में कक्षा ८ तक उर्दू भी पढ़ा हूँ । यह भी उसी माहोल की बात थी । मेहरुन्निशा जी ने इसे समरलोक मे स्थान देकर मेरे उस स्मृति को सामने आने अक मौका दिया है ।
आप भी अपनी राय मुझे भेजिए - मेरा कहानी संग्रह "अहम ब्रह्मास्मि " १९९९ मे प्रकाशित हुआ है उस के बारे मे बाद मे बात करेंगे । मेरा पता - shambarin@yahoo.com